दोस्तों, अगर संगीत की दुनिया में नाम गिना जाएगा, उसमें एक बिस्मिल्लाह खान का भी नाम जरूर आएगा। चाहे आज 21वी शताब्दी हो या 22वी शताब्दी। जब तक यह दुनिया रहेगी, तब तक बिस्मिल्लाह खान का नाम बड़े आदर से लिया जाएगा।
उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की शहनाई में ऐसी ताकत थी, जिसे सुनकर अच्छे से अच्छे गायक भी हाथ जोड़कर प्रणाम करने लगते थे। उनका सफर बहुत ही उतार-चढ़ाव था। उनके जीवन के बारे में बात किया जाए तो शुरू से अपने काम के प्रति काफी ईमानदार रहते थे। तो चलिए जानते हैं, बिस्मिल्लाह खान साहब के जीवन के बारे में।
उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के बचपन का नाम कमरुद्दीन था। उनका जन्म 21 मार्च 1916 को बिहार राज्य में मुस्लिम परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम पैगंबर खान और माता का नाम मिट्ठन बाई था। बताया जाता है कि बिस्मिल्लाह साहब बिहार के डुमराव के टेढ़ी बाजार में जन्मे थे। वे अपने माता पिता के दूसरी औलाद थे।
आपको बता दूं कि उनका खानदान शुरू से ही शहनाई बजाने का काम, महाराजा लोग के दरबार में किया करते थे। उनके पिता डुमराव के महाराजा केशव प्रसाद सिंह के दरबार में अपने संगीत का हुनर पेश करते थे।
बिस्मिल्लाह खान की शादी बहुत ही कम उम्र में करा दी गई थी। क्योंकि पहले के लोगों की शादी करने की आयु सीमा नहीं थी। उनकी शादी मुग्गन खानम से हुई, जो उनके मामू की दूसरी बेटी थी। मुग्गन खानम की शादी से उन्हें 9 संतान प्राप्त हुई। वे अपनी पत्नी से बहुत प्यार करते थे। हालांकि वे जितना प्यार अपनी पत्नी से करते थे, उतना ही प्यार अपने शहनाई से भी किया करते थे।
बिस्मिल्लाह खान साहब की एक कहानी बहुत ही फेमस है, उन्होंने इस कहानी को सबसे पहले अपने मामा को बताया, तब जाकर ये कहानी लोगो के बीच पहुंची। हालांकि उनके मामा ने इस कहानी को बताने के लिए नही कहा था। आखिर उनके मामा ने इस कहानी को सभी को बताने के लिए मना क्यों किया? तो आइए उनकी बातें कुछ शेयर करता हूं, इस पोस्ट के माध्यम से।
एक बार की बात है, जब बिस्मिल्लाह खान साहब और मामू मंदिर में रियाज कर रहे थे। उन्होंने बिस्मिल्लाह खान साहब से कहा कि इस मंदिर में कुछ भी हो तो किसी को बताना मत।
एक दिन खान साहब रात को अकेले में थे और आंख बंद करके रियाज कर रहे थे, तब अचानक उनको खुशबू महसूस हुआ। जैसी ही आंखे खोली, सामने एक बाबा खड़े थे और हाथ में कमंडल लिए। दरवाजा अंदर से बंद था, उन्हें लगा कि कोई बाहर से कैसे आ सकता है। तभी अचानक वह बाबा बोलते हैं कि बेटा बजाओ और खूब बजाओ… खूब मौज करो। फिर वो बाबा अचानक अदृश्य हो गए।
बिस्मिल्लाह साहब के मामा ने बताया था कि मंदिर में कुछ भी हो किसी को बताना मत। लेकिन बिस्मिल्लाह साहब के पेट में बात पची नहीं। उन्होंने अपने मामा से इस कहानी को बताया। उनके मामा अत्यंत क्रोधित हुए और एक थप्पड़ मारा।
बिस्मिल्लाह साहब ने कई फिल्मों में शहनाई बजाने का काम किया है। लेकिन उन्हें फिल्मों में काम करना अच्छा नहीं लगता था। बिस्मिल्लाह साहब इतने प्रसिद्ध थे कि इसका अंदाजा इसी बात से लगा लीजिए कि वह लाल किले पर आजादी के पहले दिन से लेकर वर्ष 2006 तक, उन्हें कई बार शहनाई बजाने का मौका मिला। बिस्मिल्लाह साहब को भारत रत्न भी मिला है।
17 अगस्त 2006 को बिस्मिल्लाह साहब बीमार हो गए थे। 21 अगस्त 2006 की वो मनहूस दिन, जिस दिन बिस्मिल्लाह साहब इस दुनिया से अलविदा कह गए। जैसे ही उनकी खबर सबको लगी, संगीत की दुनिया में शोक की लहर दौड़ पड़ी। सबको यकीन नहीं हो रहा था कि अचानक बिस्मिल्लाह साहब इस दुनिया से कैसे सभी को छोड़कर जा सकते हैं। लेकिन होनी को जो मंजूर था, वह तो होना ही था। बिस्मिल्लाह साहब हमलोग के बीच तो नही है लेकिन उनकी शहनाई की आवाज हमेशा लोगो के कानों में गूंजती रहेगी।
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